Tuesday, May 4, 2010

आखिर कबतक होती रहेगी ऑनर कीलिंग ?


वो तेज, खुशमिजाज, मेहनती और छोट शहर की बड़े सपने देखने वाली प्रतिभाशाली लड़की थी। अपने सपने को सच करने के लिए वह झारखंड के कोडरमा से चलकर दिल्ली तक पहुंची।

अपनी प्रतिभा की बदौलत वह न सिर्फ देश के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान भारतीय जन संचार संस्थान (i.i.m.c.) नई दिल्ली में प्रवेश लिया बल्कि यहां से डिग्री लेकर बिजनेस स्टैंडर्ड जैसे न्यूजपेपर में पत्रकार भी बनी। लेकिन वह भूल कर बैठी। भूल भी ऐसी-वैसी नहीं प्यार करने की। वह भी अपने से दूसरे जाति के लड़के से।

' वैसे प्रेम किया नहीं जाता बल्कि वह हो जाता है और यह प्रत्येक व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकार होता है ' लेकिन एक जातिवादी और ब्राम्हणवादी समाज को यह कैसे मंजूर होता कि कोई लड़की बिना उसकी इजाजत के प्रेम करे। अव्वल तो इस पुरातनपंथी समाज की नजर में किसी भी स्त्री को प्रेम क्या कोई भी काम अपनी मर्जी से करने का अधिकार ही नहीं है।

इनकी माने तो प्रेम करने के लिए जाति जरूर पूछना चाहिए, लेकिन सिर्फ जाति पूछने से भी काम नहीं चलेगा, गोत्र भी पूछिए और हो सके तो घरवालों से नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी ले लीजिए ! नहीं तो आपका फैसला खाप पंचायतें करेंगी, जातिवादी समाज करेगा।

यह आपको सबक सिखाएगा और आपको फांसी पर लटकाएगा, क्योंकि भारतीय समाज झूठी प्रगतिशिलता, आधुनिकता और सभ्य दिखने का मुखौटा ओढ़े बर्बर समाज है। जो लड़कियों को अपने फैसले करने का हक नहीं देता है। और यही इस हिंसक और दोगले समाज ने निरुपमा पाठक के साथ किया। उसे प्यार करने की सजा के बदले मौत दी गई।

निरुपमा जब पत्रकार बनने की सोची होगी तो स्वभाविक है कि उसके जेहन में भी गैर-बराबरी, जातिवाद, अन्याय और शोषण के खिलाफ लड़ने और वंचितों के पक्ष में अपनी कलम को धार देनी की रही होगी।

लेकिन उसे क्या पता था कि एक दिन वह खुद इस जातिवादी क्रूर समाज का शिकार बन जाएगी। यहां सवाल उठता है कि आखिर कब तक लड़किया ऑनर कीलिंग ( झूठी इज्जत के नाम पर हत्या) का शिकार होती रहेंगी ? कौन इसको रोकने के लिए आगे आएगा ? इन भारतीय तालिबानियों से कौन लड़ेगा ? इसका जवाब हमे आपको खुद से पूछना चाहिए। और इसका जवाब भी हमारे पास है। आप और हम लड़ेंगे।

कैसे ? तो इसका सीधा जवाब है कि अंतरजातीय विवाह करके, ऑनर कीलिंग के दोषियों को सजा दिलवाके। लेकिन इसके लिए हमे अपनी कथनी-करनी एक करनी होगी। जाति का झूठा दंभ छोड़ना होगा। ऊंच-नीच के भेद को समाप्त करना होगा। 'जाति तोड़ों, समाज जोड़ो' के नारे को बुलंद करते हुए खुद को इसमें शामिल करना होगा।

यकीन मानिए जिस दिन जाति की दीवार टूट गई उस दिन देश की अधिकतर समस्याएं अपने आप ही समाप्त हो जाएंगी। आइए एक बार निरुपमा की आत्मा की शांति के लिए बोलिए "जातिवाद का नाश हो"

2 comments:

दिलीप मंडल said...

आपके विचारों से सहमति है मित्र।

मोनिका गुप्ता said...

निरुपमा की मौत इस बात का प्रमाण है कि हमारा समाज भले ही खुद को पढ़ा लिखा और प्रगतिशील होने का दिखावा करता है, लेकिन आज भी व्यक्ति की मानसिकता हरियाणा के जाहिल खाप पंचायत चलाने वालों की मानसिकता से अलग नहीं है। यह सच है कि जिस दिन इस देश में धर्म और जाति की समस्या खत्म हो जाएगी, उसी दिन देश की आधी से अधिक समस्या का समाधान भी हो जाएगा। लेकिन ऐसा करने से पहले व्यक्ति की जातिवादी और धर्मवादी मानसिकता का बदलना बहुत जरूरी है। जिस इज्जत के नाम पर निरुपमा की हत्या की गयी क्या उसी हत्या होने के बाद वह इज्जत ढक गयी। अगर उसने शादी कर ली होती तो निरुपमा के परिवार वालों की पूरी देश में इतनी थूंथूं न होती जितनी आज हो रही है। जिस इज्जत की दुहाई दी जाती है, वह इज्जत है क्या और किस किस बात से प्रभावित होता है, ये किसी को नहीं मालूम।