शुक्रवार छह नवंबर की सुबह इंदौर से मित्र अमित सिंह विराट का फोन मुझे आधी नींद में उठाता है। पता चलता है कि पत्रकारिता के शिखर पुरुष प्रभाष जोशी जी नहीं रहे। एकाएक यकीन ही नहीं होता। नींद ऐसे उड़ गई जैसे सोया ही नहीं था। प्रभाष जोशी, मन-मष्तिक में हजारों स्मृतियां उमड़ पड़ती हैं। परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत मेल रखने वाले प्रभाष जी को कैसे याद करूं समझ में ही नहीं आता।
याद आया छात्र राजनीति का वह दौर जब मैं 2001-04 तक लखनऊ विश्वविद्यालय में अपने ग्रेजुएशन के दौरान राजनीतिक कार्यकर्ता के रुप में सक्रिय था। उन दिनों प्रदेश में छात्र राजनीति पर प्रतिबंध था। छात्र संघों की बहाली के लिए आंदोलन चलाए जा रहे थे। तब मैं प्रभाष जोशी जी को जनसत्ता के संपादक और रविवार को उनके लिखे कॉलम 'कागद कारे' के रूप में जानता था। राजनीति में रूचि होने की वजह से हर रविवार को उनके लेख का इंतजार रहता था।
राजनीति की गहरी समझ और सभी राजनीतिक दलों से संपर्क होने की वजह से उनके लेख में एक धार और खबरों के पीछे की जो खबर होती है वह दिखती थी। हमेशा नई जानकारियां मिलती थीं। प्रभाष जी से मिलने का मौका लखनऊ विश्वविद्यालय में मिला। छात्रसंघों की बहाली को लेकर उनको बुलाया गया। प्रभाष जी लखनऊ आए सभी विचारधारा और विभिन्न पार्टियों से संबद्ध छात्र संगठन के लोगों को संबोधित किया। साथ ही साथ सभी लोगों को पहले अच्छा छात्र फिर नेतागिरी करने की नसीहत भी दी।
यह वही समय था जब छात्र संगठनों में गिरावट का दौर चल रहा था। ठेकेदार और आपराधिक प्रवृत्ति के नए रंगरूट कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश करके छात्र राजनीति को सीढ़ी बनाकर पॉलिटिक्स में प्रवेश कर रहे थे। इनको खाद पानी देने का काम अपराध से जुड़े और गठबंधन की राजनीति का फायदा उठाकर विधायक से मंत्री बने नेता करते थे। प्रभाष जी यूपी और बिहार जो कभी राजनीतिक आंदोलनों और खासकर जेपी आंदोलन का गवाह रहे वहां राजनीति में आई गिरावट से न सिर्फ चिंतित थे बल्कि अपने जानने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को चेताते भी रहते थे।
प्रभाष जी सचमुच में एक राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता पहले और पत्रकार बाद में थे। गांधीवादी होते हुए भी क्रिकेट जैसे खेल में उनकी न सिर्फ रूचि थी बल्कि वह इस खेल की बारीकियों को भी समझते थे। पॉलिटिक्स के बाद उनका सबसे प्रिय विषय क्रिकेट ही था। इसे नियति का संयोग ही कहें कि उनकी मृत्यु भी अपने फेवरेट सचिन तेंदुलकर को हैदराबाद में रिकॉर्ड बनाते हुए और इंडिया-ऑस्ट्रेलिया के रोमांचकारी मैच देखते हुए हुआ।
प्रभाष जोशी जी ने पत्रकारिता में क्या योगदान दिया इसपर आलोचक पहले भी और अब उनके जाने के बाद भी बहस करेंगे लेकिन इतना तो तय है कि प्रभाष जी ने हिन्दी पत्रकारिता को आधुनिक बनाने में जो योगदान दिया उसे कोई नकार नहीं सकता। पत्रकारिता के छात्रों के लिए एक रोचक अध्ययन का विषय हो सकता है, जब पत्रकारिता में कुछ खास विषयों जैसे खेल, विज्ञान, इकॉनामी और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की कवरेज को सिर्फ अंग्रेजी पत्रकारों का एकाधिकार माना जाता था, हिन्दी पत्रकारों के साथ दोहरा बर्ताव किया जाता था और अंग्रेजी में लिखी मेन कॉपी को ही ट्रांसलेट करके हिन्दी अखबारों में छापा जाता था। उस समय प्रभाष जी ने एक नया और क्रांतिकारी कदम उठाते हुए इस परिपाटी को खत्म करके इन विषयों को कवर करने वाले श्रेष्ठ रिपोर्टरों की टीम तैयार की।
प्रभाष जी हमेशा मौलिक पत्रकारिता के पक्षधर थे। वे ट्रांसलेटेड जर्नलिज्म के खिलाफ थे। इन पंक्तियों के लेखक को प्रभाष जी ने क्रिकेट और राजनीति से जुड़ी बहुत सारी रोचक जानकारियां दी हैं। एक बार मैँने उनसे उनके क्रिकेट प्रेम के बारें में पूछा और शिकायत करते हुए कहा कि आप जैसे सर्वोदयी और गांधीवादी आदमी की क्रिकेट जैसे खेल में रूचि कैसे हुई? प्रभाष जी ने बताया कि वे जब वे इंदौर में थे तभी से उनका इस खेल से जुड़ाव हो गया था।
सीके नायडू जैसे क्रिकेटरों के साथ प्रभाष जी की न सिर्फ यारी थी बल्कि वे उनके साथ कुछ दिन बिता भी चुके थे। जीवन भर खादी और गांधी को अपनाने वाले प्रभाष जी ने क्रिकेट से संबंधित एक रोचक किस्सा सुनाया- एक बार वे क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लार्ड्स में क्रिकेट मैच कवर करने गए। उस समय वे झक सफेद खादी का धोती कुर्ता पहने हुए थे। उनके साथ मैच कवर कर रहे विदेशी पत्रकार तो उनके ड्रेस को देखकर भौंचक्के रह गए और अनुमान लगाया कि कोई आम भारतीय दर्शक गलती से पत्रकार दीर्घा में आ गया है लेकिन वहां उपस्थित भारतीय भाषा के दूसरे रिपोर्टर प्रभाष जी को तुरंत पहचान लिए। मैच कवर कर रहे विदेशी पत्रकार तो प्रभाष जी के आम भारतीयता के ड्रेस और व्यक्तिव से प्रभावित होकर न सिर्फ उनका अभिवादन किया बल्कि उनके साथ फोटो भी खिंचवाई।
इस पूरे प्रकरण पर प्रभाष जी ने बताया कि उनके कपड़े पर हंसने वाले सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तानी थे। ऐसे बहुत सारे किस्से वे जब मिलते थे तो सुनाया करते थे। राजनीति में पुराने पीढ़ी के नेताओं से संबंधित भी दिलचस्प कहानियां वे सुनाते थे।
प्रभाष जी चले गए लेकिन उनके द्वारा चलाया गया हिन्दी पत्रकारिता को आधुनिक बनाने का आंदोलन कभी रूकने न पाए और हिन्दी पत्रकार कभी भी किसी भेदभाव का शिकार न बने यही सच्चे अर्थों में प्रभाष जी को श्रद्धांजलि होगी।
8 comments:
श्री जोशी के निधन बारे में जब पता चला तो धक्का सा लगे...और कागद कारे...तो मैं बहुत दिनों तक ढूँढता रहूँगा...जबकि उस जगह कुछ होगा ही...
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जारी रहें. शुभकामनायें.
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महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
पत्रकारिता के इस प्रहरी को मेरा सलाम.
- सुलभ सतरंगी(यादों का इन्द्रजाल...)
sahdharmi ka swagat.
" bahut bahut badhai aapko aapki is behtarin post ke liye "
" aap ek JOURNALIST hai ...ye janker khusi hui ..plz WELCOME ON my blog http://eksacchai.blogspot.com
" भारत देश की लिलामी चालू है ,क्या आपको बोली लगानी है ? " is post ko padhiyega jaroor ..ummid hai ki aapki COMMENT milegi "
---- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
बहुत बढिया. स्वागत है
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करें
narayan narayan
आपने अपने आलेख के जरिए प्रभाष जी याद किया है। आप की तरह ही और सभी ने भी उनसे अपना जुड़ाव बताया और इस पर भरपूर लिखा। यह सच है सभी पत्रकारों के दिल में उनके लिए असीम प्रेम और श्रृद्धा है। ऐसे पत्रकार बहुत ही कम होते हैं। यह आपके लिए सौभाग्य की बात है कि आपको उनसे मुलाकात का अवसर मिला था। जिसे आप पूरी जिंदगी संभाल कर रख सकते हैं।
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